बुधवार, 18 नवंबर 2009

मुझे नींद न आए से लेकर स्वाइन फ्लू तक

आजकल हमने न जाने ये कौन सा शौक़ पाल रखा है.......देर रात तक जागने का। पता नहीं कमबखत मारी ये नींद रात होते ही किस पाताल में जाकर छिप जाती है, भगवान ही जाने। हां दिन के समय जब ऑफिस में काम करते हैं तो घड़ी-घड़ी "मे आई कम इन सर" कहती रहती है। सर आप कर लीजिये थोड़ा आराम, बाकी तो होता ही रहेगा काम.......जैसी लुभावनी पंचलाइन के पंच मारती रहती है, इस उम्मीद में कि कभी तो मैं नॉक-आउट होकर गिर जाऊं और मनाये वो मुझपे अपनी जीत का जश्न। मगर हम कहाँ मानने वाले हैं, अगर वो शेर तो हम सवा शेर की तर्ज़ पर गड़ाए रहते हैं नज़रें अपने कंप्यूटर पर, मजाल है कि पलक भी झपक जाय। बिल्ली-झपकी (cat-nap) तक भी नहीं लेते हैं। ठंडे पानी के छींटों से हमला करते हैं, चाय के प्यालों को चुस्कियां लेकर पीते हैं, और कभी-कभार चेहरे पर दो चार थप्पड़ों की बारिश.......नींद भी भगाए और चेहरे पर लाली भी लाए.......

पर मेरी इन कारस्तानियों से नाराज़ होकर नींद कहती है बच्चू अभी हंस ले मेरी बेबसी पर, मज़ा चखाती हूँ तुझे रात में, आज तू सोकर दिखा। तू थर्ड फ्लोर पर रहता है न, देखियो मैं कैसे ग्राउंड फ्लोर पे जाकर बैठती हूँ, आ जाइयो तब मुझे मनाने। अब नींद को ये कौन समझाए कि ऑफिस में सोना किसी भी लिहाज़ से सही नहीं है। एक तो नौकरी से निकाले जाने का डर, निकाले ना भी जाएँ तो इज्ज़त को खतरा। अब "अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम; दास मलूका कह गए सबके दाता राम" वाली बात इंसानों पर थोड़े ही लागू होती है जो हम नौकरी से निकाले जाने का खतरा मोल लें। वरना सोने के मामले में तो अपना एक ही उसूल है:

किस-किस को याद कीजिये, किस-किस को रोइए; आराम बड़ी चीज़ है, मुंह ढक के सोइए।

आजकल सर्दियों की रातें एक तो वैसे ही लम्बी होती हैं, ऊपर से ये नींद ना आना.......रात आख़िर काटी जाय तो कैसे। लगता है इस पर थोड़ा रिसर्च वर्क करना होगा, तब कहीं जाके बात बनेगी। अब गर्मी के दिन हों बात अलग है कि तारे वगैरह गिनो और रात काटो। इतनी सर्दी में बाहर तारों की छाँव में सोना तो खांसी, ज़ुकाम, नजला, बुखार आदि-आदि बीमारियों को न्योता देना है। ऊपर से आजकल स्वाइन फ्लू का चक्कर अलग, ज़रा सा खांसा या छींका नहीं कि सामने वाले डर के मारे ग़ायब। अब इन्हें भी कौन समझाए कि जैसे हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती, वैसे ही हर खांसी-ज़ुकाम स्वाइन फ्लू नहीं होता। वैसे सावधानी रखने में कोई हर्ज़ नहीं, मगर ये कोई बात थोड़े हुई कि आई छींक और पहुँच गए हस्पताल स्वाइन फ्लू चिल्लाते हुए आजकल चंडीगढ़ का यही हाल है। पूरी जानकारी के अभाव में हर कोई परेशान है, तो हमने सोचा अब नींद नहीं आ रही तो स्वाइन फ्लू की जानकारी ही लोगों तक पहुँचा दें, किसी का तो भला हो :-

स्वाइन फ्लू के लक्षण: स्वाइन फ्लू के लक्षण बिल्कुल सामान्य एन्फ्लूएंजा के लक्षणों जैसे ही होते हैं। बुखार (100.4°F तक), तेज ठंड लगना, नाक बहना, तेज सिरदर्द होना, खाँसी आना, गला खराब हो जाना, मांसपेशियों में दर्द होना, कमजोरी महसूस करना, उलटी, डायरिया आदि इनमें प्रमुख हैं। पीड़ित व्यक्ति में इनमें से कम से कम तीन लक्षण ज़रूर दिखायी देते हैं।


संक्रमण: संक्रमित व्यक्ति का खाँसना और छींकना या ऐसे उपकरणों को स्पर्श करना जो दूसरों के संपर्क में भी आते हैं जैसे घर-ऑफिस के दरवाजों, खिडकियों के हेंडल, कीबोर्ड , मेज, टेलीफोन के रिसीवर या टॉयलेट के नल इत्यादि।

सावधानियाँ: चूंकि स्वाइन फ्लू महज़ एन्फ्लूएंजा A H1N1 वायरस है, इसलिए इस वायरस के संक्रमण के दौरान सामान्य एन्फ्लूएंजा के दौरान रखी जाने वाली सभी सावधानियाँ रखी जानी चाहिए। लगातार अपने हाथों को साबुन या ऐसे सॉल्यूशन से धोएं जो वायरस का ख़ात्मा कर देते हैं। नाक और मुँह को ढँकने के लिए मास्क का प्रयोग करें। इसके अलावा जब ज़रूरत हो तभी आम जगहों पर जाएँ ताकि संक्रमण ना फैल सके। डिहाड्रेशन से बचने के लिए पानी पीते रहें।

इलाज: संक्रमण के लक्षण प्रकट होने के ४८ घंटे के भीतर ही डॉक्टरी सलाह पर एंटीवायरल ड्रग जैसे कि oseltamivir (Tamiflu) और zanamivir (Relenza) देना जरूरी होता है। इससे मरीज को राहत मिलने के साथ-साथ बीमारी की तीव्रता भी कम हो जाती है। मरीज को तुरंत किसी अस्पताल में भर्ती कर दें ताकि पैलिएटिव केअर शुरू हो जाए और तरल पदार्थों की आपूर्ति भी पर्याप्त मात्रा में होती रह सकें।

तो लीजिये कर दिया हमने आपको स्वाइन फ्लू से आगाह, बदले में सिर्फ़ आपकी अच्छी सेहत और हमें नींद आ जाए इसकी दुआ करते हैं। अब जब हमने अपना ज्ञान-पिटारा खोल ही दिया है तो बताय देते हैं कि नींद न आना भी एक बीमारी है और इसे इनसोम्निया कहते हैं। वैसे इतनी सारी बीमारियाँ देखकर तो एक ही ख़याल आता है:

कुछ बात और दिनों की है,
जब राम यहाँ पर बसते थे,
अब एक छींक आ जाए तो,
सब स्वाइन फ्लू चिल्लाते हैं।

लगता है निंदिया रानी मेहरबान हो ही गई, पोस्ट को सुबह छपने के लिए लगाते हैं और कविता को फ़िर-कभी फुर्सत में निबटायेंगे.......

7 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉगिंग और प्रेम दोनो मे ऐसा ही होता है ..।

    जवाब देंहटाएं
  2. कुछ बात और दिनों की है,
    जब राम यहाँ पर बसते थे,
    अब एक छींक आ जाए तो,
    सब स्वाइन फ्लू चिल्लाते हैं.....

    YE SAB VIDESHI DEN HAI ... PATA LAGAAIYE KIS KA HAATH HAI ISKE PEECHE ... ACHHA HAASY HAI ...

    जवाब देंहटाएं
  3. अरे वाह बहुत सुन्दर अच्छा लगा ।

    जवाब देंहटाएं
  4. मै तो सोच रहा हूँ की कहानी इधर की उधर कैसे छप गई...चलिए समस्या जग जाहिर तो हुई...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर लिखा, दिन मै चाय कम पीयो, शाम को एक बीयर पी लो नींद मजे से लो, स्वाइन फ्लू पर मै कल एक पोस्ट लिखने वाला हु.
    धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये

    जवाब देंहटाएं
  6. भाई तुझे याद दिला दूँ तू इंजिनियर है कोई स्क्रिप्ट लिखने वाला नहीं


    पर फिर भी लिखा बहुत ही अच्छा है.........

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ एवं विचार मेरी सोच को एक नया आयाम, एक नयी दिशा प्रदान करती हैं; इसलिए कृपया अपनी टिप्पणियाँ ज़रूर दें और मुझे अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत होने का मौका दें. टिप्पणियाँ समीक्षात्मक हों तो और भी बेहतर.......