आज़माइए बर्थडे विश करने का ब्रैंड न्यू, धाँसू मगर जानलेवा तरीका
गुरुवार, 10 दिसंबर 2009हमारे एक सर हैं, विक्रम सर जो हमारे साथ काम नहीं करते बल्कि ये तो सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारी ख़ुशकिस्मती है जो हमें उनके साथ काम करने का मौका मिला है। दिखने में सर एकदम एंग्री यंग मैन टाइप हैं पर हर किसी से प्यार से बातें करना, सारे सहकर्मियों का उत्साह बढ़ाना जैसे गुण उनकी ख़ासियत हैं। और हाँ....... हँसी-मज़ाक के मामले में अपन दोनों की जोड़ी का जवाब नहीं, वो भी जब मज़ाक खुशाल भाईसाहब को लेकर हो। वैसे मुझे तो आज तक ये भी पता नहीं चल पाया कि खुशाल भाईसाहब का सही नाम क्या है, कुशाल, खुशाल, खुशहाल या फ़िर कुछ और.......;-) ख़ैर अपने को इससे क्या लेना-देना हम तो उन्हें भाईसाहब या वीरे कहकर ही बुलाते हैं, सारा झंझट ही ख़त्म।
वैसे नाम से ये भाईसाहब खुशमिजाज़ लगते हैं मगर ज़रा सा मज़ाक किया नहीं कि इनका थोबड़ा सूज जाता है। अच्छा अब खुशाल भाईसाहब की कथा की यहीं इतिश्री करते हैं और वापस मुद्दे पर आते हैं। आगे समाचार इस प्रकार है कि विक्रम सर का जन्मदिन साल में केवल एक ही बार आता है.......;-) और इसका कारण ये है कि साल में १० दिसंबर भी एक ही बार आता है। ये कुदरत का क़ानून है, प्रकृति का अटल नियम है (वैसे मैंने साल में २-३ जन्मदिन वाले बन्दे भी देखे हैं). अब जन्मदिन का उल्लेख किया है तो बधाई भी ऑटोमैटीकली आती ही है। इसलिए सर आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ (ये मेरी तरफ़ से) और अर्ज़ करता हूँ (टपाया हुआ):
उगता हुआ सूरज रोशनी दे तुम्हें,
महकता हुआ चमन खुशबू दे तुम्हें,
हम तो कुछ देने के लायक नहीं,
पर देने वाला हर खुशी दे तुम्हें।
अब सर को जन्मदिन की बधाई देते हुए हमनें मस्त शायरी वाली पोस्ट चिपका तो दी है, लेकिन यहाँ दो बातें हो सकती हैं: या तो सर इसे पढ़ेंगे या नहीं पढ़ेंगे। नहीं पढ़ने का तो सवाल ही नहीं उठता क्योंकि हमनें उन्हें कल ही बता दिया था कि हम ये कारनामा करने वाले हैं और पढ़ लिया तो फ़िर दो बातें हो जायेंगी: या तो सर को पसंद आएगी या नहीं। अब इतनी अच्छी-अच्छी बातें लिखने के बाद भी पसंद ना आए तो कोई क्या कर सकता है, और अगर पसंद आ गई तो दो बातें हो जायेंगी: या तो सर सबासी देंगे या नहीं देंगे। सबासी देने के लिए सर कोई गब्बर सिंह तो हैं नहीं और अगर सबासी नहीं दी तो फ़िर पोस्ट लिखने का क्या फ़ायदा। इसलिए सर की एक बात पर ग़ौर फरमाता हूँ जो उन्होनें काफ़ी टाइम पहले कही थी, "यार तू सबके बर्थडे कार्ड्स पर पोयम्स लिखता है, एक पोयम मेरे पर भी लिख डाल।"
उस वक्त मेरा जवाब था: "जानी, लिखेंगे और ज़रूर लिखेंगे, आपके बारे में ही लिखेंगे लेकिन सही वक्त आने पर और कागज़ या कंप्यूटर पर ना कि आप पर" और आज लग रहा है कि वो बहुप्रतीक्षित सही वक्त आ पहुँचा है। तो पेश करता हूँ कुछ पंक्तियाँ दिल से, ख़ास आपके लिए सर .......
पहली दफ़ा जब आपको देखा और मिला था मैं,
आपको शायद ठीक से समझ न सका था मैं,
यूँ तो भांप जाता हूँ हर तूफ़ान के खतरों को,
पर इस सुनामी को सूंघ भी ना सका था मैं।
हाँ सुनामी, मगर उसके किताबी अर्थ से उलट,
प्रवाह हो अपने आप में सकारात्मक ऊर्जा का,
रचनाशीलता का, हास्य-व्यंग्य का, विनोद का,
और केंद्रबिंदु मेरी इस हास्य-कविता का।
लेकिन आज आपका जन्मदिन है इसलिए,
आपको बेवजह नाराज़ करने से क्या फ़ायदा,
चलिए एक जादू की झप्पी और ढ़ेरों बधाइयां,
दे देना ठीक होगा, यही कहता है क़ायदा।
अब उपहारों का चलन भी है इस अवसर पर,
तो पेश है एकदम ताज़ी भाजी सी ये कविता,
सुनिए-सुनाइये, पढ़िए, झूमिये और गाइए,
जो कुछ भी करें इसके साथ,है आपकी इच्छा।
वैसे और कितनी तारीफ़ करूँ मैं आपकी,
क्योंकि मेरे लफ्ज़ जवाब देने लग पड़े हैं,
आपके इस विराट व्यक्तित्व के सामने,
मेरे वाक्य छोटे, बहुत छोटे लगने लगे हैं।
पर लोग जो भी कहें आप सच में महान हो,
गुणवान ही नहीं गुणों की पूरी खदान हो,
बलवान हो, पहलवान हो, शक्तिमान हो,
पर सच्ची-मुच्ची सर, आप हमारी जान हो।
आप सभी ब्लॉगर महानुभावों से निवेदन है कि आज सर की लम्बी उम्र की दुआ करने के साथ-साथ मेरी सलामती की दुआ भी करें। और मैं दुआ करूंगा कि सर को कविता पसंद आई हो, पढ़कर सिर्फ़ मुस्कुराए ही ना हों बल्कि हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए हों वरना मुझे शायद आज की छुट्टी लेनी पड़े.......;-)
वैधानिक चेतावनी: कॉपी-पेस्ट करके ऑरकुट, फेसबुक इत्यादि वेबसाइट पर जन्मदिन की बधाई देने वाले महानुभाव अपने रिस्क पर इस पकी-पकाई कविता को स्क्रैप के रूप में निःशुल्क प्रयोग कर सकते हैं लेकिन कविता के कारण हुई किसी भी प्रकार की शारीरिक मरम्मत के लिए लेखक ज़िम्मेदार नहीं होगा ....... :-)
कविता : ऐ हवा कभी तो मेरे दर से गुज़र
सोमवार, 7 दिसंबर 2009कभी समंदर किनारे नर्म, ठंडी रेत पर बैठे हुए डूबते हुए सूरज को निहारना ....... और फ़िर यूँ लगे कि मन भी उसी के साथ हो लिया हो। इस दुनिया की उथल-पुथल से दूर, बहुत दूर और पा लेना कुछ सुकून भरे लम्हें ....... किसी पहाड़ी की चोटी पर बने मन्दिर की सीढियां पैदल चढ़कर जाना और दर्शनोपरांत उन्हीं सीढ़ियों पर कुछ देर बैठकर वादी की खूबसूरती को आंखों से पी जाना। बयाँ करते-करते थक जाना मगर चुप होने का नाम न लेना। मगर इन सबके बीच जब तन्हाई आकर डस जाए तो कुछ दर्द के साए उमड़ने लगते हैं और ना चाहते हुए भी ख़्वाबों-ख्यालों का ताना-बाना कुछ इस तरह सामने आता है
ऐ हवा कभी तो मेरे दर से गुजर,
देख कितनी महकी यादें संभाली हैं मैंने,
संग तेरे कर जाने को,
हवा हो जाने को।
ऐ बहार कभी तो इधर भी रुख कर,
देख कई गुलाब मैंने भी रखे थे कभी,
किताबों में मुरझाने को,
पत्ता-पत्ता हो जाने को।
ऐ चाँद थोड़ी चाँदनी की इनायत कर,
कई छाले मैंने भी सजा कर रखे हैं,
बेजान बदन तड़पाने को,
रूह का दर्द छिपाने को।
ऐ चिराग घर में कुछ तो रोशनी कर,
कई बार आशियाँ जलाया है मैंने,
उजाला पास बुलाने को,
अँधेरा दूर भगाने को।
ऐ शाम ना जा, ज़रा कुछ देर ठहर,
अक्सर रात को पाया है मैंने,
तन्हाई मेरी मिटाने को,
दोस्त कोई कहलाने को।