कविता : मैं चुप हूँ.......

बुधवार, 27 मई 2009

यह कविता क्यों??
पंजाब और समीपवर्ती राज्यों के मौजूदा हालात से सारा देश वाकिफ़ है। ये हालात हमारे लिए नए नहीं हैं, आज यहाँ तो कल वहाँ वाली बात हो गए हैं। खेद है कि आए दिन इंसानियत को शर्मसार करने वाली ऐसी घटनाएं (दुर्घटनाएं) होती रहती है। मगर एक आम आदमी के मन में इस सब को लेकर क्या चलता है, यही कहने की एक छोटी सी कोशिश.......

मैं चुप हूँ,
ख़ामोश हूँ,
कुछ कहना नहीं चाहता,
मेरी यह चुप्पी,
इस बात को लेकर नहीं,
कि मुझे दीन-दुनिया से कोई सरोकार नहीं,
या फिर,
मैं हूँ बेखबर आस-पास के हालातों से,
बल्कि इसलिए क्योंकि मैं,
कुढा हुआ हूँ इस सब से,
यह व्यर्थ के दंगे,
हिंसा आगजनी,
क्या है ये सब,
क्यूँ हम अपनी इंसानियत,
अपने उसूल भूल जाते हैं,
वो उसूल जो हमें सिखाते हैं,
अच्छे काम करना,
सभी से प्रेम करना,
सत्य, अहिंसा की राह पर चलना.
बचपन से यही सब सीखते आते हैं,
मगर एक पल के आवेश, जूनून में
इन्हें कहीं दूर छोड़ आते हैं,
उतर आते हैं हैवानियत पर, दरिंदगी पर,
कहीं बस जलाई, कहीं घर-बार,
कहीं मारा-पीटा, कहीं तोड़ा-फोड़ा,
यही सब तो करते हैं,
पता नहीं क्यूँ.......

मैं चुप हूँ,
क्योंकि मैं डरा हुआ हूँ सहमा हुआ हूँ,
अपने घर में दुबका हुआ हूँ,
बाहर सड़कों पर कुछ साये,
हाथों में नंगी तलवारें लिए,
घूम रहे हैं इधर-उधर,
सोचता हूँ,
जिनके नाम पर यह सब कर रहे हैं,
क्या उन्होनें कहा ऐसा करने को,
कभी नहीं,
उन्होनें तो यह सपने में भी,
नहीं सोचा होगा,
कितनी दुखेगी उनकी आत्मा,
जब उन्हें यह ज्ञात होगा,
और क्या हासिल कर पायेंगे हम,
इस सब से,
माना जो हुआ वो गलत था,
मगर हम क्या सही कर रहे हैं??
हिंसा का बदला हिंसा,
घृणा का बदला घृणा,
खून का बदला खून,
ये तो हमें किसी ने नहीं सिखाया था,
तो क्यूँ ये सब करके,
बद हालातों को बदतर बना रहे हैं,
अपना, अपने समाज का, अपने देश का,
नुक्सान कर रहे हैं।

मैं चुप हूँ,
क्योंकि आज ये पता चला कि,
आम आदमी की चुप्पी,
कितनी दर्दभरी,
कितनी बेबस,
और लाचार होती है।
कब समझेगा कोई इस चुप्पी को,
इसके पीछे छुपे दर्द को,
कब रुकेगा ये अमानवीय सिलसिला,
आज यहाँ तो कल वहाँ पर का,
कब ख़त्म होगी,
ये नफरत की जंग,
कब लायक होंगे हम,
इंसान कहलाने के।


22 टिप्पणियाँ
निर्मला कपिला ने कहा…

चाहे शब्द् मूक हैं अभीव्यक्ति अदृष्य़ है
मगर इस मौन मे एक आशा अवश्य है
कि एक दिन इस मौन मे उठेगा एक ज्वार
जो कर देगा सब को खबरदा
कविता् कभी मरती नहीं है
अपने फर्ज़ से टलती नहीं है
हाँ वो जरूर एक दिन आयेगी
सब को प्रेम का पाठ पढायेगी

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है आपकी कविता ने दिल को छू लिया है आभार्

ज्योति सिंह ने कहा…

yese dardnaak haadse dil dahala jate hai ,bhav gahare hi nahi marmik bhi hai .dua hai ye kalam talwaar ko hara de ,hinsaa ko is jahaan ke sabhi mulk se hata de .vijayee ho safal ho .

रंजना ने कहा…

Bahut bahut sahi kaha....

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

बहुत दर्द है यहाँ....किन्तु कौन समझे इस दर्द को....सबका अपना इक फ़र्ज़ है.....मगर कौन समझे इस फ़र्ज़ को....ये भी देश का इक मर्ज़ है.....किन्तु कौन समझे इस मर्ज़ को....!!

बेनामी ने कहा…

आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया जो आपने अपना कीमती समय दिया तथा अपने विचारों से अवगत कराया.

साभार
हमसफ़र यादों का.......

Urmi ने कहा…

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ही ख़ूबसूरत कविता लिखा है आपने जो दिल को छू गई !

neha ने कहा…

ye kavita ke madhyam se aapne sabhi ke dil ki vyatha ko ujagar kiya hai.....ham aapke aabhari hain....blog main apni tippanni dene ke liye dhanyawaad.....aage bhi tippaniyon ka swagat hai

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

ab hwa se bhi darne lage hai log jidhar dekhe khidki band hai.......nice poem n very nice blog...

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

pahli baar aayaa aour paya ki ...ynha vecharikta ki adbhut shrankhlaa he///
कब लायक होंगे हम,
इंसान कहलाने के।
yah prashn aaj se nahi balki sdiyo se kondh rahaa he aour ab tak insaan nahi mil payaa///kesa vikaas, kesi unnati, kesa badlaav//
bahut achhe bhavo ke saath vastvikta ko ukera he aapne/

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

अच्छी अभिव्यक्ति है

Alpana Verma ने कहा…

'कब समझेगा कोई इस चुप्पी को,
इसके पीछे छुपे दर्द को,
कब रुकेगा ये अमानवीय सिलसिला'
कविता में आप ने एक आम आदमीके दर्द को बखूबी अभिव्यक्त किया है.

प्रकाश गोविंद ने कहा…

मैं चुप हूँ,
ख़ामोश हूँ,
कुछ कहना नहीं चाहता,.


नहीं दोस्त
जिगर में आग है तो उसे बाहर निकालो
चुप रहने से बात नहीं बनेगी !

इस सुन्दर दुनिया को चंद हैवानों ने इतना बदरंग
नहीं किया जितना कि बेशुमार चुप रहने वाले शरीफों
ने किया है !

आपकी भावनाओं से प्रभावित हुआ !
शुभकामनायें !!

शोभना चौरे ने कहा…

ak marmik kvita .
vo log jo manviyta kho chuke hai .kash vo ye sab pdh pate .

गौतम राजऋषि ने कहा…

अच्छा लिखते हैं आप...
बहुत अच्छा लिखते हैं

Renu goel ने कहा…

आपने आम आदमी की चुप्पी को जो शब्द
दिए है, उसका शुक्रिया....दंगे फ़साद से नफ़रत
करने वाला हर व्यक्ति यही सोचता है कैसे
ये नफ़रत की आँधी रुके ....हर सुबहा अख़बार
की बुझी हुई शक्ल बताती है आज फिर कहीं
बेवजा किसी को मौत के घाट उतार दिया गया...
और वो उदासी अख़बार से निकल कर हमारी
चर्चायों मे उतर आती है ...और चर्चा फिर
कुछ समय मे खामोशी की शक्ल एख्तेयार कर लेती
है .....ये ही है आम आदमी .....

ओम आर्य ने कहा…

बिल्कुल सही बात करी है आपने या यो कहे की समाजिक कसौटियो पर इंसान आकर ऐसा ही सोचता है या आत्ममंथन करता है तो यही बस पाता है.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपकी चुप नें बहुत कुछ कह दिया है...............लाजवाब

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मैं चुप हूँ,
क्योंकि आज ये पता चला कि,
आम आदमी की चुप्पी,
कितनी दर्दभरी,
कितनी बेबस,
और लाचार होती है।
कब समझेगा कोई इस चुप्पी को,
इसके पीछे छुपे दर्द को,
कब रुकेगा ये अमानवीय सिलसिला,
आज यहाँ तो कल वहाँ पर का,
कब ख़त्म होगी,
ये नफरत की जंग,
कब लायक होंगे हम,
इंसान कहलाने के।

गहरे भाव लिए वर्तमान स्थितियों पर प्रहार करती मार्मिक रचना ....अच्छा लिख रहे हैं आप ....बधाई ....!!

ghughutibasuti ने कहा…

शायद कभी नहीं। मानव होना शायद वहशी होना ही होता है।
घुघूती बासूती

श्यामल सुमन ने कहा…

आम आदमी की चुप्पी,
कितनी दर्दभरी,
कितनी बेबस,
और लाचार होती है।

वाह। अच्छी अभिव्यक्ति। दुष्यन्त कुमार कहते हैं कि-

सच बोलता हूँ तो इल्जाम बगावत का।
चुप रहूँ तो बेबसी सी होती है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Daisy ने कहा…

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Daisy ने कहा…

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