कविता : सपूत

रविवार, 12 जुलाई 2009

कुछ समय पहले गौतम राजरिशी जी के ब्लॉग पर "मेजर ऋषिकेश रमानी - शौर्य का नया नाम" पोस्ट पढ़ी थी जिसे पढ़कर सीमा पर डटे अपने इन वीर जवानों के प्रति श्रद्धा भाव और बढ़ गया। साथ ही सरकार और मीडिया की अनदेखी से जुड़ी कुछ कड़वी सच्चाइयां भी सामने आई। इन्हीं सब मनोभावों से जन्मी यह कविता आज आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। और एक ख़ास बात आप सभी पाठकों से....... कृपया सर, महोदय जैसे संबोधनों का प्रयोग ना करें, यकीन जानिए मैं उम्र और अनुभव में आपसे बहुत छोटा हूँ, इसलिए आपसे स्नेह की ही आकांक्षा रखता हूँ.......

आँख नम है, सर झुका है,
वो चला जा रहा है देखो,
किसी माँ का लाड़ला इक,
चार कांधों के सहारे।
जी चुका जो पूर्ण जीवन,
छा रहा था किंतु यौवन,
देश की सीमा पे जिसने,
कर दिया तन-मन समर्पण।

रह गया जो याद बनकर,
स्मृति चिन्हों में उतरकर,
लड़ गया ख़ुद ही अकेला,
कर्तव्य सर-माथे पे रखकर।
देश को ही बहन माना,
देश को ही माँ समझकर,
देश की रक्षा को जिसने
कर दिए पण-प्राण अर्पण।

माँ अकेली रो रही है,
बहन भी बेसुध पड़ी है,
थे पिता के कितने सपने,
एक विधवा भी खड़ी है।
आज धरती ने भी अपना,
इक सपूत खो दिया है,
हवा भी खामोश चुप है,
गूंजता सिर्फ़ करुण क्रंदन।

लिपटा हुआ तिरंगे में वो,
पुष्पमाला सज चुकी है,
तारीफ़ के पुल बांधते सब,
२१ तोपें बज चुकी हैं।
कुछ समय में पदक देकर,
सब भुला बैठेंगे उसको,
पर नहीं भूलेगा उसको,
देश की माटी का कण-कण।


19 टिप्पणियाँ
श्यामल सुमन ने कहा…

लिपटा हुआ तिरंगे में वो,
पुष्पमाला सज चुकी है,
तारीफ़ के पुल बांधते सब,
२१ तोपें बज चुकी हैं।
कुछ समय में पदक देकर,
सब भुला बैठेंगे उसको,
पर नहीं भूलेगा उसको,
देश की माटी का कण-कण।

इसे पढ़कर मन द्रवित हो गया।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Udan Tashtari ने कहा…

पूरा समर्पण है..गज़ब!! बेहतरीन है!!

Desk Of Kunwar Aayesnteen @ Spirtuality ने कहा…

माँ अकेली रो रही है,
बहन भी बेसुध पड़ी है,
थे पिता के कितने सपने,
एक विधवा भी खड़ी है।
आज धरती ने भी अपना,
इक सपूत खो दिया है,
हवा भी खामोश चुप है,
गूंजता सिर्फ़ करुण क्रंदन।


Bemishal.....Naman hai un vir saputon ko...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

लिपटा हुआ तिरंगे में वो,
पुष्पमाला सज चुकी है,
तारीफ़ के पुल बांधते सब,
२१ तोपें बज चुकी हैं।
कुछ समय में पदक देकर,
सब भुला बैठेंगे उसको,
पर नहीं भूलेगा उसको,
देश की माटी का कण-कण।

प्रशांत जी , देश प्रेम से ओत- प्रोत बेहतरीन कविता....इस
कविता के लिए नमन है आपको ....आँखें नम कर दी आपने ....देश के वीरों तुम्हें सलाम ....!!!!!

Razi Shahab ने कहा…

माँ अकेली रो रही है,
बहन भी बेसुध पड़ी है,
थे पिता के कितने सपने,
एक विधवा भी खड़ी है।
आज धरती ने भी अपना,
इक सपूत खो दिया है,
हवा भी खामोश चुप है,
गूंजता सिर्फ़ करुण क्रंदन।

बेहतरीन कविता....आँखें नम कर दी आपने

निर्मला कपिला ने कहा…

रह गया जो याद बनकर,
स्मृति चिन्हों में उतरकर,
लड़ गया ख़ुद ही अकेला,
कर्तव्य सर-माथे पे रखकर।
देश को ही बहन माना,
देश को ही माँ समझकर,
देश की रक्षा को जिसने
कर दिए पण-प्राण अर्पण।
बहुत ही मार्मिक रचना आँखें नम हो गयी क्यों कि मैं अपने एक करीबी बेटे जैसे सपूत की शहादत देख चुकी हूँ आँखों देखा सच अपने फिर याद दिला दिया आभार और बहुत बहुत आशीर्वद कि आज भी कुछ लोग शहीदों की कुरबानी को याद करते हैं्

Urmi ने कहा…

बहुत ही ख़ूबसूरत और दिल को छू लेने वाली कविता लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! इस सुंदर कविता के लिए ढेर सारी बधाइयाँ !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कुछ समय में पदक देकर,
सब भुला बैठेंगे उसको,
पर नहीं भूलेगा उसको,
देश की माटी का कण-कण

दिल को छू लेने वाली मार्मिक रचना, सलाम देश के वीरों, तुम्हें सलाम हैं.........

shama ने कहा…

ख़ामोश हूँ ..याद आ गयी चंद पंक्तियाँ ...जिन्हें मेरे दादा दादी ने चाहा था ..
आपकी नज़्म ने आँखों मे आँसू भर दिए...

" 'मधु 'की है चाह बोहोत ,
मेरी बाद वफ़ात ये याद रहे ,
खादी का कफ़न हो मुझपे पड़ा ,
वंदे मातरम् आवाज़ रहे .."!
ऐसे वीर सपूतों की मेरे पास भी दास्तानें हैं ...किसे सुनाऊँ ?
और हम कितनी ही कुर्बानियाँ भूल चुके हैं...! कितनी ही कुर्बानियों को medea ने नज़र अंदाज़ किया...क्योंकि, वो सन सनीखेज़ नही थीं..!

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बेनामी ने कहा…

आप सभी सहृदय पाठकों के देशप्रेम के जज़्बे को मैं सलाम करता हूँ.....और साथ ही आभार व्यक्त करता हूँ निर्मला जी एवं शमा जी का जिन्होनें अपने मन के उदगार सभी से सांझा किये.....शमा जी से कहना चाहूंगा कि यदि आपके पास ऐसे अनाम वीर सपूतों के संस्मरण हैं तो उन्हें सभी के साथ बांटने की कृपा करें...... और रही बात सुनने वालों की, तो सारा ब्लॉगर परिवार आपके साथ है, चिंता ना करें.....

साभार
प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
हमसफ़र यादों का.......

Vinay ने कहा…

very good poem
---
चर्चा । Discuss INDIA

गौतम राजऋषि ने कहा…

दिल को छूती....दिल के करीब लगी रचना...

लगता है, जैसे तमाम संवेदनायें सिमट कर बस इस ब्लौग-जगत तक ही सीमित रह गयीं । बाहर की दुनिया को तो इससे कोई सरोकार दिखता नजर नहीं आता...

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण कविता.....सत्य में आखें नम है....आभार.


गुलमोहर का फूल

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

"कुछ समय में पदक देकर,
सब भुला बैठेंगे उसको,
पर नहीं भूलेगा उसको,
देश की माटी का कण-कण।"
इन पंक्तियों का जवाब नहीं...
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

Daisy ने कहा…

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