दिल-ए-नादाँ की उदासी
सोमवार, 29 जून 2009इस हफ्ते अति व्यस्तता के चलते ब्लोग्स को ज्यादा समय नहीं दे पाया और आने वाला सप्ताह भी कुछ ऐसे ही जाने के संकेत हैं, इस वजह से माफ़ी चाहूंगा। बारिश ने जब देश के कई इलाकों में अपनी कृपा दृष्टि के परिणामस्वरुप जल-वृष्टि की है, चंडीगढ़ अभी भी सूखे की मार झेल रहा है। मौसम से लेकर मिज़ाज़ तक में कुछ भी नया-ताज़ा न होने की सूरत में इस बार एक पुराना गीत ही पेश-ए-खिदमत है, जो यहाँ भी छप चुका है .......
दिल-ए-नादाँ जब कभी भी उदास होता है,
एक अजनबी सा शख्स मेरे पास होता है;
ज़िंदगी की इन तेज़ रफ़्तार घड़ियों में,
वो लम्हा वो पल कुछ ख़ास होता है.
सुबह का सूरज दिन भर तपकर,
शाम तक बूढा हो जाता है;
दरिया में डूबते डूबते अपनी छाप,
मेरे कच्चे मन पर छोड़ जाता है.
उसके इस चलन में मुझे,
अपनी जलन का एहसास होता है.
दिल-ए-नादाँ ....................
रात की रानी अपनी बाहों के आगोश में,
हौले से जग को भर लेती है;
नींदें मेरी उड़ जाती हैं पंख लगाकर,
सपनों की आहट ही कहाँ होती है.
मैं और मेरी तन्हाई के इस मंज़र का,
खामोश गवाह केवल आकाश होता है.
दिल-ए-नादाँ .......................
ज़िंदगी दर्द भरी दवा लगने लगी है,
कड़वी बद्दुआ भी अब दुआ लगने लगी है;
समंदर भी शर्म से सर झुका लेता है,
अश्कों की धारा अब दरिया लगने लगी है.
बहारों के मौसम में भी जाने क्यों,
पतझड़ का सा आभास होता है.
दिल-ए-नादाँ ..................
14 टिप्पणियाँ
- ओम आर्य ने कहा…
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रात की रानी अपनी बाहों के आगोश में,
हौले से जग को भर लेती है;
नींदें मेरी उड़ जाती हैं पंख लगाकर,
सपनों की आहट ही कहाँ होती है.
मैं और मेरी तन्हाई के इस मंज़र का,
खामोश गवाह केवल आकाश होता है.
दिल-ए-नादाँ ......................
बहुत ही बेहतरीन रचना है .................यह पंक्तियाँ दिल से उतर गयी..........क्या कहे ...............वाह वाह. - 29 जून 2009, 10:51:00 am
- विनोद कुमार पांडेय ने कहा…
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sundar rachana.
kya bhav piroya hai aapne..
aapke dil e nadan ko itani sundar bhav ke liye badhayi..aur aapko bhi usaki baat itani achche shabdon me vyakt karane ke liye dhanywaad - 29 जून 2009, 11:00:00 am
- Chandan Kumar Jha ने कहा…
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बहुत सुन्दर रचना. बधाई.
- 29 जून 2009, 4:34:00 pm
- Desk Of Kunwar Aayesnteen @ Spirtuality ने कहा…
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Bahut khub janab...Esi tarah time nikal kar likhte chaliye...Dhanyavad...
- 29 जून 2009, 4:37:00 pm
- Udan Tashtari ने कहा…
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ज़िंदगी की इन तेज़ रफ़्तार घड़ियों में,
वो लम्हा वो पल कुछ ख़ास होता है.
-बहुत सुन्दर रचना!! - 29 जून 2009, 10:55:00 pm
- Arvind Mishra ने कहा…
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उम्दा रचना
- 30 जून 2009, 6:57:00 am
- दिगम्बर नासवा ने कहा…
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सुबह का सूरज दिन भर तपकर,
शाम तक बूढा हो जाता है;
दरिया में डूबते डूबते अपनी छाप,
मेरे कच्चे मन पर छोड़ जाता है.
सुन्दर रचना..........मन को छु गयी आपकी rachna - 30 जून 2009, 3:57:00 pm
- डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…
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khoobsoorat prastuti .
- 1 जुल॰ 2009, 10:22:00 am
- shama ने कहा…
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इस रचना ने मेरे जीवन के चंद , बेहद खूबसूरत , लेकिन , आज जिनकी याद एक टीस पैदा कर देती है , ऐसे लम्हें याद दिला दिए ...!
एक आँख से कसक का मोती टपका , तो दूसरी से प्यारका ...!
इन्हें किसी डिब्बी में बंद कर के रख सकती , या पिरो के गले लगा सकती तो कितना अच्छा होता ...!
वैसे तो पता नही कितने पेश क़ीमती मोती वक़्त की धुंद में खो गए....जिन्हें ज़िंदगी ने मुझे नज़र किया, और फिर उतनी ही बेरहमी से छीन भी लिया...!
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- प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…
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"दिल-ए-नादाँ जब कभी भी उदास होता है,
एक अजनबी सा शख्स मेरे पास होता है;
ज़िंदगी की इन तेज़ रफ़्तार घड़ियों में,
वो लम्हा वो पल कुछ ख़ास होता है."
ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगी.... - 5 जुल॰ 2009, 5:06:00 pm
- Urmi ने कहा…
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बहुत ही शानदार और उम्दा रचना लिखा है आपने!
- 13 जुल॰ 2009, 12:26:00 pm
- Daisy ने कहा…
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- Daisy ने कहा…
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- PurpleMirchi ने कहा…
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