कविता : इन्सां मगर क्यों खो रहा है ?
गुरुवार, 20 अगस्त 2009राष्ट्र विकसित हो रहा है, मन तरंगित हो रहा है;
मिल जायेंगे पुतले बहुत, इन्सां मगर क्यों खो रहा है।
स्वप्न देखे जो सुनहरे, दूर के थे ढोल सारे;
पास जाकर अब है जाना, लाख कुंदन हो रहा है।
रक्षा करेगा कौन सोचो, रक्षक ही भक्षक हो रहा है;
माली जलाए बाग़ को, तो नाव माझी डुबो रहा है।
रिश्ते सभी अब नाम के हैं, स्नेह बंधन खो रहा है;
आँख में आँसू सभी के, पर हृदय किसका रो रहा है।
एक तरफ़ है दौलत-शोहरत, एक ओर है लाचारी;
कोई पड़ा रंगीनियों में, कोई सड़क पर सो रहा है।
भगवान तेरा हर इक बन्दा, कर रहा है गोरख-धंधा;
फ़िर जा रहा हरिद्वार-काशी, पाप अपने धो रहा है।
चाहता खातिर-तवज्जो, दूसरों की नहीं ख़ुद की;
खुद आम खाने की तमन्ना, बबूल-कीकर बो रहा है।
11 टिप्पणियाँ
- Arshia Ali ने कहा…
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sach ke kareeb lagee gazal.
( Treasurer-S. T. ) - 20 अग॰ 2009, 2:52:00 pm
- aarya ने कहा…
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प्रशांत जी
सादर वन्दे!
सच्चाई यही है :-
आदमियत की बात करें क्या, दर्द हैं गम के मंजर हैं,
हर इन्सान तो लूट रहा है प्यार ये किसके अन्दर है .
रत्नेश त्रिपाठी - 20 अग॰ 2009, 3:18:00 pm
- दिगम्बर नासवा ने कहा…
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एक तरफ़ है दौलत-शोहरत, एक ओर है लाचारी;
कोई पड़ा रंगीनियों में, कोई सड़क पर सो रहा है।
ग़ज़ल के माध्यम से बहुत ही lajawab भाव लिखा हैं आपने .......... सीधे mn में utarte हैं .......... सच लिखा है - 20 अग॰ 2009, 6:31:00 pm
- Udan Tashtari ने कहा…
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बहुत उम्दा भाव!!
- 20 अग॰ 2009, 10:03:00 pm
- Anil Pusadkar ने कहा…
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अच्छी और सच्ची रचना,बधाई आपको सच की शब्दों से तस्वीर खींचने के लिये।
- 21 अग॰ 2009, 11:05:00 am
- Kuwar ने कहा…
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अतिउत्तम काव्यांश जी आपने जो आज की वास्तविकता से परिचय कराने का जो एक प्रयाश किया है ये बहुत ही सराहनीय है
- 24 अग॰ 2009, 9:14:00 am
- Chandan Kumar Jha ने कहा…
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बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति.
- 25 अग॰ 2009, 3:46:00 am
- Creative Manch ने कहा…
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रक्षा करेगा कौन सोचो, रक्षक ही भक्षक हो रहा है;
माली जलाए बाग़ को, तो नाव माझी डुबो रहा है।
बहुत उम्दा रचना
आपको बधाई
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C.M. को प्रतीक्षा है - चैम्पियन की
प्रत्येक बुधवार
सुबह 9.00 बजे C.M. Quiz
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क्रियेटिव मंच - 25 अग॰ 2009, 7:31:00 pm
- बेनामी ने कहा…
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चाहता खातिर-तवज्जो, दूसरों की नहीं ख़ुद की;
खुद आम खाने की तमन्ना, बबूल-कीकर बो रहा है।
its very beautiful.loved this poem...thanks for posting this poem
cheers!! - 30 अग॰ 2009, 7:55:00 pm
- दिगम्बर नासवा ने कहा…
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स्वप्न देखे जो सुनहरे, दूर के थे ढोल सारे
पास जाकर अब है जाना, लाख कुंदन हो रहा ह
रिश्ते सभी अब नाम के हैं, स्नेह बंधन खो रहा है
आँख में आँसू सभी के, पर हृदय किसका रो रहा है
लाजवाब ग़ज़ल है आपकी ............... हर शेर कमाल का है ....... - 31 अग॰ 2009, 6:04:00 pm
- बेनामी ने कहा…
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लाजवाब ...
- 27 अग॰ 2012, 8:12:00 pm
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