कितना बदल गया भगवान

बुधवार, 3 जून 2009

आजकल के हालात हममें से किसी से भी छुपे नहीं हैं। बदलते ज़माने के साथ-साथ बहुत कुछ बदल गया है। रिश्ते-नाते, परम्परा, संस्कृति, समाज सब कुछ तो बदल गया है इस आधुनिकता की अंधी दौड़ में। और सबसे बड़ी बात इंसान ही बदल गया है। "इंसानियत वाला इंसान" नामक प्राणी विलुप्ति की कगार पर है। नास्तिक फ़िल्म का गीत "देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान......." एकदम सही लिखा गया है इन हालातों पर। अब तो आलम यह है कि हर कोई इन हालातों को अपनी नियति मानकर जी रहा है। "क्या फ़र्क पड़ता है" वाली विचारधारा ज़ोर पकड़ती जा रही है। कहने को दुनिया में पहुँच का दायरा बढ़ता जा रहा है, परन्तु इन सबके बीच इंसान की सोच और सोच का दायरा सिकुड़ता जा रहा है, बल्कि मैं तो ये कहूँगा की सोचने का ढंग बदलता जा रहा है, दिशा बदलती जा रही है। बच्चों का बचपन भी इन सब से अछूता नहीं रह गया है।

अभी कुछ दिन पहले की बात बताता हूँ। मैं एक होटल में खाना खा रहा था। मेरे सामने वाली मेज पर दो बच्चे बैठे हुए थे। उम्र रही होगी उनकी कोई ७ या ८ साल। दोनों नूडल्स खा रहे थे और खाते-खाते बातें भी किए जा रहे थे। चूँकि मैं उनके पास ही था इसलिए मुझे उनकी बातें बिल्कुल साफ़-साफ़ सुनाई दे रहीं थी। देखने में दोनों अच्छे घरों के लग रहे थे। पहले तो वे अपने स्कूल और दोस्तों वगैरह की बातें कर रहे थे, सो मैं उनकी बातें सुन तो रहा था पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा था। अचानक उनके बीच में हुई कुछ बातों ने मेरे कान खड़े कर दिए। गाली-गलौज से भरा हुआ उनका संवाद (यहाँ संपादित रूप में) कुछ इस तरह था :-

पहला : यार..... कल पता क्या हुआ ??
दूसरा : क्या ??
पहला : मेरे भैया ने दो तीन लड़कों की खूब कुटाई की, सालों के हाथ-पैर तोड़ दिए।
दूसरा : हैं ?? मगर क्यूँ ??
पहला : अबे वो तीनों बंशी के ढाबे पे बैठकर खाना खा रहे थे। पास में ही मेरे भैया और उनके दोस्त बैठे थे। अब भैया का मूड किया तो सिगरेट पीने लगे। ज़रा सा धुआं उन तीनों की तरफ़ चला गया तो उनमें से एक लगा उछलने। बोला, आप को पता नहीं यहाँ पर सिगरेट पीना मना है, आप कहीं और क्यूँ नहीं जाते। अगर पुलिस में कम्प्लेंट कर दी तो फाइन हो जाएगा। दिमाग चाट डाला यार उसने भैया का।
दूसरा : फ़िर ??
पहला : फ़िर क्या...अपने भैया को फालतू की चिक-चिक पसंद नहीं है। खींच के धर दिया उस लौंडे को। लग गई होगी अकल ठिकाने उसकी, बड़ा हीरो बन रहा था। मगर उसके साथी हाथापाई पर उतर आए। तभी ढाबे वाले ने बीच-बचाव करके मामले को रफा-दफा कर दिया। पर अपने भैया तो शेर हैं। बोल दिया उनको बाहर मिलने को। बाहर भैया ने अपने और दोस्तों को भी कट्ठा कर लिया और सबके हाथ-पैर तोड़ दिए। क्यूँ मान गया न अपने भैया को।
दूसरा : हाँ यार, ठीक किया तेरे भैया ने। ऐसे लोगों को यही सबक सिखाना चाहिए। अपने पैसों की ही तो पी रहे थे तेरे भैया, फ़िर भी चले आए पता नहीं कहाँ से टांग अड़ाने। एक सेकंड, तू ऐसा क्यूँ नहीं करता कभी अपने भैया को स्कूल में ले आ, सबकी वाट लग जायेगी। चल, अब आगे का बता।
पहला : पर एक पंगा पड़ गया। भैया और उनके दोस्तों को पुलिस पकड़कर ले गई। मगर पापा ने उन्हें छुड़ा लिया, टेंशन की कोई बात ही नहीं। लेकिन चलो अपने भैया ने दो-चार के हाथ पैर ही तो तोड़े, ख़ुद तो पिटकर नहीं आए, वरना पापा की क्या इज्ज़त रह जाती। सब लोग बोलते अरे इसका बेटा पिटकर आया है।

ये सब सुनकर मेरे होश उड़ गए। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि इस उम्र में ऐसी बातें बनाना इन्होने कहाँ से सीखा ?? आख़िर किसने ये सब बातें इनके दिमाग में डाली ?? इनके सोचने का ढंग तो मासूमियत और निश्छलता से परे है। क्या वाकई ये बच्चे मन के सच्चे कहलाने के लायक हैं। इस संवाद से तो ये कदापि नहीं लगता। अपने बचपन के दिनों को याद करने लगा जब हम कितने भोले-भाले, लाग-लपेट से दूर, सीधे-सादे हुआ करते थे। ऐसी बातें तो हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे। आख़िर कहाँ गया वो बचपन ?? वो भोलापन ?? यदि बचपन ऐसा है तो फ़िर जवानी और बुढ़ापे का अंदाज़ा आप ख़ुद लगा सकते हैं। बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं, ऐसा सुनता और मानता आया था। मगर ये सब देखकर सोचता हूँ अब भगवान का यह रूप भी सुरक्षित नहीं रहा बाहरी दुनिया के प्रभाव से। हमारे ये नन्हे भगवान कहीं खोते जा रहे हैं। अंत में, बस इतना ही कहना चाहूंगा :

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई ______, कितना बदल गया भगवान (बहुत सोचा पर समझ नहीं आया खाली जगह में क्या लिखूं ?? आप को कुछ सूझे तो बताइएगा ज़रूर)


16 टिप्पणियाँ
श्यामल सुमन ने कहा…

सार्थक चिन्तन आपका यही जगत का हाल।
बड़ों की बातें छोड़िये बच्चा करे कमाल।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

अजय कुमार झा ने कहा…

na ab wo jamaanaa raha ..naa wo maahaul.....so bachche ...aur unkee maasomiyat bhee ab wo nahin rahi...darasal ye sab samaaje kee badlatee soch kaa parinaam hai...jo bhee vartman ko dekhte hue yahi lagtaa hai ki bhavishya khatarnaam hoga.....saarthak vishay chuna hai aapne....

Vinay ने कहा…

जो हो सो हो, हमें सिर्फ़ स्वयं पर विचार करना चाहिए, जब ऐसा होगा तो कोई भी बदला हुआ नहीं लगेगा। मतलब परस्ती ही बदलाव को जनम देती है। मेरा ऐसा सोचना है।

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

आजकल बच्चों का यही व्यहवार देखने को मिल रहा है!एक शिक्षक होने के नाते मैंने इसे महसूस किया है..!उद्दंडी और भाई टाइप के बच्चों को अन्य बच्चे अपना रोल माडल मानने लगें है...!इसी कारण वे अपने से बड़ी उम्र वालों को दोस्त बना लेते है, जो उनका शोषण करते है और गलत लाइन में ड़ाल देते है...

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

मजबूरी में उसे भी बदलना ही पडा होगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Unknown ने कहा…

अच्छा लगा.
हमें इस और भी सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों है?

यह सोचने का ढंग क्यों बदल रहा है, ऐसे किन मूल्यों का तथाकथित व्यवहारिकता की आड में प्रचलन बढ़ रहा है जो ऐसे संस्कार पैदा करते हैं?

अगली पोस्ट इसी पर लिख मारिए...

गौतम राजऋषि ने कहा…

जमाने का चलन है सर। ये जेनेरेशन एमटीवी रोडीज और रियालिटी शो का...

अनिल कान्त ने कहा…

गौतम भाई जी सही कह रहे हैं

वीनस केसरी ने कहा…

शितान का राज चल रहा है इसलिए आप भगवान को कुछ नहीं कह सकते
हो सकता है आपको भी पुलिस पकड ले :)
वीनस केसरी

बेनामी ने कहा…

आप सभी का टिप्पणियों एवं सुझावों के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.....समय जी अपनी अगली तो नहीं मगर आने वाली किसी पोस्ट में इस समस्या का कारण एवं समाधान प्रस्तुत करने की कोशिश करूंगा.....बस पढ़ते रहिये..

साभार
हमसफ़र यादों का.......

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

प्रिय प्रशांत
बहुत अच्छी तरह से इस नए बदलाव को पकडा और प्रस्तुत किया है
इस विषय पर कुछ और उदाहरण एकत्र करना चाहिए ताकि बचपन से हो रहे इस बलात्कार पर समाज की सम्वेदनाएँ जाग्रत की जा सकें .आपका यह प्रयास कुछ और कडियों की मांग कर रहा है

बेनामी ने कहा…

गर्दूं-गाफिल जी, समय जी तथा बाकी सब से तो मैं वादा कर ही चुका हूँ इस विषय को भविष्य में विस्तृत एवं व्यापक रूप में प्रस्तुत करने का, साथ-साथ आपको भी बताना चाहूंगा कि जितना संभव हो सकेगा, मैं इस विषय पर ज़रूर लिखूंगा......बस थोड़ा सा इंतज़ार करना पड़ेगा आपको......टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!!!

साभार
हमसफ़र यादों का.......

ज्योति सिंह ने कहा…

sachmuch sansaar ki halat sochane layak hai .magar yahan sabhi laachaar hai .ati sundar .mere blog par aane ke liye shukriya .

SAHITYIKA ने कहा…

bilkul sahi kaha..
aaj kal ki hod me... bachche bachche nahi rah gaye hai.. unka bachpan kahi gayab ho gaya hai..
10 sal ki umar se hi ladkiyan apne kapdo, apne bahari aavran ko le kar bahut sochne lage hai. padhai yaa khelkood se jayada man in sabhi kaamon me lagta hai.. ladko ka bhi yahi haal hai.. aur hm is khote bachapan k liye kuch nahi kar sakte.. mujhe lagta hai.. jaha parivar wale is ke liye jimmedar hai.. wahi.. tv per aane wale serials ka bhi isme bahut bada haath hai..

Daisy ने कहा…

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Daisy ने कहा…

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